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Hindi। प्रेमचंद और रेणु की स्त्री दृष्टि एवं प्रेम की अवधारणाएं

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प्रेमचंद एवं रेणु की स्त्री-दृष्टि एवं प्रेम की अवधारणा काफी व्यापक है। इसे हम किसी एक कृति के आधार पर नहीं देखा जा सकता है।

यह बात हिंदी विभाग, पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बंदना ने कही।

वे प्रेमचंद और रेणु की स्त्री दृष्टि एवं प्रेम की अवधारणा विषय पर व्याख्यान दे रही थी।

उन्होंने कहा कि अभी रेणु का शताब्दी वर्ष चल रहा है। लेकिन ऊपर जितना काम होना चाहिए था अपना काम नहीं हुआ है। वैसे 10 वर्षों में कुछ काम हुआ है, लेकिन अभी और काम करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि रेणु की रचनाओं में प्रेम का अद्भुत वर्णन देखने को मिलता है। उनके यहां प्रेम का है बहुत बड़ा वातायन है। यहां सिर्फ दैहिक प्रेम नहीं है, इससे आगे की बात है, जो अलौकिक है।

उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का समय घर में स्त्रियों को बंद रखने का समय था। खासकर जब आरंभ में रचना कर रहे थे तब। उनकी रचनाओं का लंबा दौर रहा है। धीरे-धीरे उनकी रचनाओं में परिवर्तन आता गया है। उनके नारी पात्रों में बहुलता है। प्रेमचंद की शुरुआती रचनाओं में बेमेल विवाह, विधवा विवाह आदि को प्रमुख रूप से चित्रित किया गया है। प्रेमचंद के अनुसार प्रेम का आधार विश्वास है। विश्वास से बड़ी से बड़ी जंग को जीता जा सकता है।

उन्होंने कहा कि आज स्त्रियों को एक देह के रूप में बदल दिया गया है। इसे प्रेमचंद ने बहुत पहले ही देख लिया था। आज मुजफ्फरपुर बालिका गृह का जो कांड सामने आया है। इसे रेणु ने अपनी एक रचना में दिखाया है।

उन्होंने कहा कि आलोचकों का मानना है कि प्रेमचंद विवाह संस्था में विश्वास नहीं करते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। आज के कुछ युवा विवाह संस्था को नकार रहे हैं। लेकिन आज भी अधिकांश लोग विवाह के समर्थक हैं। यदि हम विवाह रूपी संस्था पर चोट करेंगे, तो समाज का ढांचा टूट जाएगा। आज कुछ महिलाएं बच्चा पैदा करने से इंकार कर रही हैं। लेकिन उसे समझना चाहिए कि बच्चों को जन्म देना एक सृजन है, अपने आप में महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि आज प्रगतिशीलता की ओट में भी जाति-व्यवस्था फल-फूल रही है। जेएनयू में भी जातिवाद है। वहां भी कई बड़े-बड़े प्रगतिशील प्राध्यापक विद्यार्थियों का सरनेम जानकर अपना निर्णय लेते हैं।

उन्होंने कहा कि जाति व्यवस्था एवं भेदभाव सिर्फ हिंदुओं में नहीं है। अन्य धर्मों में भेदभाव रहा है। इस्लाम एवं ईसाई धर्म में भी अलग-अलग तरह से भेदभाव मौजूद है।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।