Search
Close this search box.

Covid-19। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान हुए पर्यावरण में सुधार से सबक लेने की जरूरत

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान हुए पर्यावरण में सुधार से सबक लेने की जरूरत

बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला के तहत गुरुवार को हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय गढ़वाल उत्तराखंड के भौतिक विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ आलोक सागर गौतम ने कोविड-19 लोक डाउन के दौरान पर्यावरण में हुए बदलाव पर व्याख्यान दियाI

डॉ. गौतम ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण में लगभग 55% की शुद्धता आई है जो कि पिछले कई दशकों में ऐसी शुद्धता कभी नहीं देखी गई। इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में अच्छा प्रभाव देखने को मिला हैI

उन्होंने बताया कि पेड़-पौधे, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, नदी- नाले, तालाब आदि में बदलाव देखे जा सकते हैं। कोयल, गिलहरी, कौवा गौरैया और के प्रकार की तितलियां वातावरण में स्वच्छ विचरण कर रही है। इससे प्रतीत होता है कि कहीं ना कहीं वायु प्रदूषण की इसके लिए जिम्मेदार हैI लॉकडाउन से पूर्व भारी प्रदूषण के कारण जीव-जंतु और पशु-पक्षियों को काफी कम देखा जाता था। लॉकडाउन के दौरान गांव और शहरों में बीमार पड़ने वाले मरीजों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है।

उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान हुए मुख्य प्रभावों में से एक वायु प्रदूषण में आई कमी है, जो कि लॉकडाउन से पूर्व एक विश्वव्यापी समस्या थी। एक गंभीर समस्या का विषय हैI पूरे पृथ्वी ग्रह को सिर्फ के रूप में ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही थी। लॉकडाउन में हुए वायु गुणवत्ता में सुधार से एक आशा की उम्मीद जगी है।

उन्होंने बताया हरित गृह गैसों (ग्रीन हाउस गैस) में नाइट्रस ऑक्साइड का 6%, 13% मिथेन, 5% फ्लोरोकार्बन और 76% कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन वातावरण में होता है। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए हर संभव प्रयास किए गएI
लॉकडाउन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 17% की कमी आई है।

उन्होंने बताया कि वैश्विक तापमान में वृद्धि के लिए वायु प्रदूषक तत्व, हरित गृह गैसों का मानक से ज्यादा वातावरण में उत्सर्जन है। लाकडाउन में इस उत्सर्जन में कमी को लेकर पर्यावरण विशेषज्ञ आशान्वित हैं कि सुधार के चलते वातावरण सभी के लिए अनुकूल होगाI

उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण एक अदृश्य किलर है। इसकी वजह से दुनिया भर में 29 प्रतिशत मृत्यु फेफड़ों के कैंसर से, 24 प्रतिशत स्ट्रोक से, 25 प्रतिशत हृदय संबंधी बीमारियों से, 43 प्रतिशत फेफड़ों की बीमारी से होती है। कोविड-19 लॉकडाउन से वायु प्रदूषण में सुधार से निश्चित रूप से उपरोक्त बीमारियों में कमी आई होगीI

उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान एयर क्वालिटी इंडेक्स में अप्रत्याशित कमी आंकी गई है। ओजोन परत के नुकसान में भी कमी आंकी गई।

उन्होंने कहा कि पर्यावरण में सुधार के लिए इस तरह के लोग डाउन उपायों को आगे आने वाले दिनों में प्रदूषण की कमी के लिए लगाया जा सकता है। एक ना एक सूलझने वाली समस्याओं को लॉकडाउन से सुलझा जा रह हैI

उन्होंने बताया कि समाज को समझने की जरूरत है कि अनलाक के बाद से पर्यावरण में पुनः कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ेगा और फिर वही समस्याएं दोबारा जन्म लेंगेI ऐसे में सरकारों को समाज के सुधार के लिए योजनाओं को नए तरीके से बनाने की जरूरत है। यह मानना होगा कि लॉकडाउन किया जाना ही एकमात्र विकल्प है। इससे वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। वर्क फ्रॉम होम, सदियों से निजी गाड़ियों पर प्रतिबंध, क्लीन एनर्जी समाधान, में ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को लेकर जो खतरा बना रहता है उसे निपटा जा सकेI

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।