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Kriti Narayan Mandal *कीर्ति नारायण मंडल की जन्मतिथि एवं पुण्यतिथि को लेकर विवाद समाप्त हो*

*कीर्ति नारायण मंडल की जन्मतिथि एवं पुण्यतिथि को लेकर विवाद समाप्त हो*

महामना कीर्ति नारायण मंडल की जन्मतिथि एवं पुण्यतिथि को लेकर भ्रम की स्थिति समाप्त होनी चाहिए। इनके परिजनों से प्राप्त प्रमाणित जानकारी के अनुसार उनकी जन्मतिथि 7 अगस्त, 1911 और पुण्यतिथि 7 मार्च, 1997 है।

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने कही।

उन्होंने बताया कि उन्हें कीर्ति बाबू के निकट संबंधी डॉ. विशाखा कुमारी से उनकी प्रमाणिक वंशावली प्राप्त हुई है। उसमें स्पष्ट रूप से जन्मतिथि 7 अगस्त, 1911 और पुण्यतिथि 7 मार्च, 1997 है। अतः अब इस मामले में नाहक भ्रम नहीं रखना चाहिए।

उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने महाविद्यालय में विभिन्न तिथियों में कीर्ति बाबू को लेकर कई आयोजन किए। तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. परमानंद यादव ने कीर्ति नारायण मंडल प्रतिमा बनबायी। प्रधानाचार्य के. पी. यादव के कार्यालय में वह प्रतिमा लगी। लेकिन दुखद है कि उसमें भी जन्मतिथि एवं पुण्यतिथि सही-सही दर्ज नहीं है।

उन्होंने बताया कि उन्होंने वर्ष 2020-21 में तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. के. पी. यादव के माध्यम से समाजसेवी श्रीमन्त बाबू से बात करके कीर्ति बाबू की जन्मतिथि 7 अगस्त, 1911 और पुण्यतिथि 7 मार्च, 1997 तय कर लिया था। इसके बाद वर्ष 7 अगस्त, 2021 को कीर्ति नारायण मंडल जयंती समारोह का आयोजन किया गया था। इसमें तत्कालीन कुलपति प्रो. ज्ञानंजय द्विवेदी ने भी शिरकत की थी।

उन्होंने बताया कि वर्ष-2022 में भी वे 7 अगस्त को कार्यक्रम आयोजित करना चाहते थे। लेकिन महाविद्यालय के नवनियुक्त प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव को कीर्ति बाबू के किसी परिजन से जानकारी मिली कि जन्मतिथि 18 मार्च है। इसके कारण फिर से जन्मतिथि एवं पुण्यतिथि को लेकर अस्मंजस की स्थिति बन गई।
लेकिन 9 मार्च, 2024 को डॉ. विशाखा मैडम ने कीर्ति बाबू की प्रमाणिक वंशावली उपलब्ध करा दिया है। इसलिए अब इस मामले में कोई भ्रम नहीं रखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कीर्ति बाबू को याद करना हमारी सामाजिक एवं नैतिक जिम्मेदारी तो है ही, हमारी व्यक्तिगत एवं पेशागत जिम्मेदारी भी है। इसलिए कीर्ति बाबू की सभी प्रतिमाओं पर उनकी सही-सही जन्मतिथि एवं पुण्यतिथि अंकित की जानी चाहिए और सभी शिक्षण संस्थानों में उनके जीवन-दर्शन को केंद्र में रखकर विविध आयोजन होने चाहिए।