राबिया की कहानी
प्रेमकुमार मणि
ईराक के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से में स्थित एक नगर है बसरा. यह एक पोर्ट भी है. जहां पोर्ट हो,ज़ाहीर है वह आर्थिक महत्त्व की जगह होती है. है भी. लेकिन यह शहर संतों केलिए भी जाना जाता है. इस्लाम में रहस्यवादी ख्यालों के खूबसूरत कसीदे यहाँ बुने गए. इन ख्यालों को दार्शनिक मान्यता मिली.
आठवीं सदी में इसी शहर की एक संत थीं राबिया बीवी. उनका समय ईस्वी सं 717- 801 के बीच है. उनका व्यक्तित्व हिंदुस्तानी अक्क देवी और मीरा बाई की तरह का है. अक्खड़, दीप्त और तेजोमय. उन्होने विवाह करने से मना कर दिया. इस्लाम में किसी स्त्री को अविवाहित रहने की इजाजत नहीं है. राबिया पर विवाह के लिए दबाव बनाया गया. वह नहीं मानीं. कहा – मेरे दिल में अल्ला के सिवा किसी के लिए कुछ भी जगह नहीं है.
उस जमाने के एक बड़े सूफी संत हसन अल बसरी उनके पास गए. उन्होने कहा -” मैं पूरे रात-दिन उनके पास रहा. लेकिन यह समझ नहीं पाया कि वह स्त्री हैँ और मैं पुरुष.”
राबिया ने उनके पास कुरान रख दिये. संत पढ़ने लगे तो देखा एक जगह सवालिया निशान लगा है. कुरान पर सवाल ? वह तो अल्ला के शब्द हैँ. किंतु राबिया तो राबिया थीं. उन्होने सवाल उठाये थे. संत के पूछने पर कहा – लिखा है शैतान से नफरत करो. लेकिन मैं नफरत कैसे करूँ? मेरे मन में इश्क के सिवा कुछ है ही नहीं. अल्ला को दिल में रख कर मैं किसी से नफरत कैसे कर सकती हूँ.
संत चुप लगा गए.
तो ऐसी थीं राबिया बसरा.
एक समय था जब इस्लाम में भी विवेक और विचार के फूल खूब खिले. मियां मंसूर अल हल्लाज (852-922 ईस्वी )ने अनलहक का नारा बुलंद किया. हिन्दुत्व के बीच कभी अहम् ब्रह्मास्मि का नारा बुलंद हुआ था. मैं ही ब्रह्म हूँ. मंसूर ने कहा – “मैं ही अल्ला हूँ. अनलहक. ” यह ईश्वर से एकात्म हो जाने की स्थिति है. सब जानते हैं इस्लामी सनातनियों ने उन्हें बर्बरता पूर्वक मार दिया था. लेकिन वह झुके नहीं. उनके एक वैचारिक शिष्य सरमद को औरंगजेब ने सिर कलम करवा दिया,क्योंकि वह कलमा का आरम्भिक “ला इल्लाह ” बोल कर रूक गया था . ला इल्लाह का मतलब है नहीं है अल्ला.
जिस समाज और धर्म में विचारों के नये फूल खिलने बन्द हो जाते हैं, वह धर्म या समाज बाँझ बन जाते हैं. ऐसे समाज और धर्म आहिस्ता-आहिस्ता हिंसक बनते जाते हैं. समय-समय पर सवाल उठते रहने चाहिए. अन्यथा समाज बाँझ बन सकता है. पुरोहित, मुल्ला और पादरी चाहते हैं कि धर्म का सनातनी स्वरूप बना रहे, ताकि आम जनता को वे उल्लू बनाते रहें और उनका शोषण करते रहें. नये विचार हमेशा पुरोहितों के विरुद्ध जाते हैं, इसलिए इन विचारों से वे भय खाते हैँ.
राबिया बीवी हमें यही बताती हैं कि सवाल उठते रहने चाहिए. प्रेम और विवेक जीवन में बना रहना चाहिए. नफरत की बुनियाद पर कोई समाज या धर्म देर तक टिक नहीं सकता.