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BRABU का कुलगीत और उसके रचनाकार के उद्गार।

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आज 26 जनवरी, 2025 का दिन मेरे लिए अविस्मरणीय हो गया।

आज मेरे द्वारा रचित गीत को बाबासाहेब भीमराव अंबेदकर बिहार विश्वविद्यालय (BRABU) के कुलगीत के रूप में स्वीकृत और अंगीकृत किया गया। माननीय कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र राय ने गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर आधिकारिक रूप से इसकी घोषणा की।

आज मैं वाकई बहुत खुश हूँ। मेरी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं, किताबें छपी हैं, सम्मान-पुरस्कार मिले हैं, लेकिन यह खुशी सबसे बढ़कर है।

चयन-प्रक्रिया में कुलपति महोदय के दिशा-निर्देशन में निर्णायक मंडल ने जो पारदर्शिता और निष्पक्षता बरती है, उसके लिए उनके प्रति आभार। साथ ही, अपने गुरुजनों, सहकर्मी साथियों और परिवार का आभार, जिनकी प्रेरणा और दबाव के बिना यह असंभव था।

कुलगीत की संगीत-रचना डॉ. राकेश कुमार मिश्रा ने की है। उनके निर्देशन में संगीत के विद्यार्थियों ने आज उसे बहुत सुंदर ढंग से गाया। सुनकर मैं रोमांचित होता रहा। उनकी पूरी टीम का शुक्रिया

कुलगीत

मनोरम ज्ञान का आलय, हमारा विश्वविद्यालय

सुविद्या-दान का आलय, हमारा विश्वविद्यालय

 

हरित-सुरभित-फलित-विस्तृत यहाँ की स्निग्ध अमराई

सजल अभिषेक पुष्करिणी जिसे नित सींचती आयी

इसी की गोद में पुलकित हमारा नीड़ अति सुन्दर

नवल खगवृन्द को देता नवेले स्वर, नवेले पर

नवेले नभ-प्रसारों के अथक आख्यान का आलय

हमारा विश्वविद्यालय…

 

जगज्जननी दुलारी जानकी के जन्म से पावन

धरा यह धन्य, पद धारे जहाँ श्रीराम मनभावन

यहीं पर आदिकवि के कण्ठ से फूटी कथा निर्मल

जिसे गाती हुई बहती सदानीरा सदा कल-कल

जगत् की आदिकविता के अनुष्टुप गान का आलय

हमारा विश्वविद्यालय…

 

प्रथम गणतन्त्र की माता इसे पोषित करें प्रतिपल

अशोकस्तम्भ-राजित सिंह देते उच्चता का बल

तथागत बुद्ध के पद-पंकजों से भूमि अभिनन्दित

यहीं चौबीसवें जिनदेव की जन्मस्थली वन्दित

अहिंसक लोकधर्मों के उदय-उत्थान का आलय

हमारा विश्वविद्यालय…

 

महात्मा का सबल साक्षी, सुभग श्रीकृष्ण का सपना

बना अम्बेदकर-संज्ञा-सुशोभित मान यह अपना

रहे शिक्षक यहाँ राजेन्द्र औ’ आचार्य कृपलानी

रहे दिनकर लिये अपनी प्रखर तेजस्विनी बानी

यहीं थे जानकीवल्लभ, बड़े सम्मान का आलय

हमारा विश्वविद्यालय…

 

–राकेश रंजन जी के फेसबुक वॉल से साभार।

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