विश्वविद्यालयी ज्ञान को मुक्त करने की जरूरत : डाॅ. योगेन्द्र
सच्चा ज्ञान मनुष्य को सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करता है। लेकिन आज विश्वविद्यालयी ज्ञान ही बंधनग्रस्त है। अतः आज हमें सबसे पहले विश्वविद्यालयी ज्ञान को मुक्त करने की जरूरत है।
यह बात विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के अध्यक्ष प्रो. (डाॅ.) योगेन्द्र ने कही।
वे बुधवार को विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, भू. ना. मंडल विश्वविद्यालय, लालूनगर, मधेपुरा (बिहार) के तत्वावधान में आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। व्याख्यान का विषय विश्वविद्यालयी ज्ञान : बंधन या मुक्ति था।
डाॅ. योगेन्द्र ने कहा कि विश्वविद्यालयी ज्ञान हमें ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, छल, छद्म, क्रोध आदि से मुक्त नहीं कर रहा है। उल्टे यह हमें सामाजिक विकृतियों में जकड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि सच्चा ज्ञान हमें मुक्त एवं निर्भय बनाता है। लेकिन आज विश्वविद्यालयी ज्ञान हमें कुंठित एवं भयभीत बना रहा है। डरा हुआ समाज सृजन नहीं कर सकता है।
उन्होंने कहा कि सच्चा ज्ञान मानव जीवन में प्रकाश लाता है। लेकिन आज का विश्वविद्यालयी ज्ञान समाज एवं राष्ट्र को अंधकार की ओर ढ़केल रहा है।
उन्होंने कहा कि देश में कई तरह के विश्वविद्यालय हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, डिम्बड विश्वविद्यालय और निजी विश्वविद्यालय
को मिलकर सैकड़ों विश्वविद्यालय हैं। इन विश्वविद्यालयों से प्रति वर्ष हजारों विद्यार्थी डिग्री लेकर निकलते हैं। प्रायः सभी विश्वविद्यालय डिग्री बांटने के कारखाने बने हुए हैं।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य एक स्वतंत्र, संवेदनशील एवं सृजनशील मनुष्य का निर्माण करना है। लेकिन विश्वविद्यालयों में मनुष्य का निर्माण नहीं हो रहा है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि पूर्व अध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, पूर्णियाँ विश्वविद्यालय, पूर्णियाँ प्रो. (डाॅ.) सूर्य नारायण यादव ने कहा कि विश्वविद्यालय शिक्षा में सिर्फ चीजों को याद रखना या दुहराना पर्याप्त नहीं है। इसमें विवेचन एवं विश्लेषण की क्षमता होना जरूरी है। अपना मौलिक मन्तव्य विकसित करना भी जरूरी है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, भू. ना. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा की अध्यक्ष प्रो. (डाॅ.) उषा सिन्हा ने कहा कि आज शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों को आत्ममूल्यांकन करने की जरूरत है। दोनों अपनी-अपनी कमियों को पहचानें और उसका परिष्कार करें।
इस अवसर पर पूर्व विभागाध्यक्ष डाॅ. विनय कुमार चौधरी, मैथिली विभाग के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. आमोल राय, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डाॅ. बी. एन. यादव, सिंडिकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान, जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर, असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. पूजा गुप्ता, डाॅ. मोनिका, डाॅ. सदय, विभिषण कुमार आदि उपस्थित थे।