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श्यामप्रिया सामाजिक समरसता केंद्र का एक आयोजन

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श्यामप्रिया सामाजिक समरसता केंद्र का एक आयोजन

समरसता का सत्संग-जुट 2025

श्यामप्रिया सामाजिक समरसता केंद्र, टेंगराहा, मधेपुरा, बिहार. पिन 852128

28 जनवरी 2025, सुबह 11 बजे से शाम 3 बजे

एक समरस और समावेशी समाज के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी बदलती जरूरतों और प्राथमिकताओं को सही तरीके से समझें, ज़रूरत मुताबिक़ हम सब मिलकर समुचित दिशा तैयार करें और उन्हें अपनाने के लिए तैयार रहें। एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है कि हम ज़मीनी स्तर की आवाज़ों को अपने मंच पर जगह दें। बेहतर तो हो कि जो हमेशा कहते आए हैं, वे सुनें और जो सुनते आए हैं वे अपनी बात कहें।

कुछ कहना है? हम आपको सुनना चाहेंगे।

भारतीय समाज हमेशा से विविधता में एकता का प्रतीक रहा है। यही विविधता हमारी समरसता के ताने-बाने को गहराई और मजबूती प्रदान करती है। हालाँकि, इस ताने-बाने को प्रभावित करने वाले कई पहलू हैं। कृषि, रोज़गार, शिक्षा, समानता, स्वतंत्रता, पर्यावरण, प्रदूषण और तकनीक जैसे कई कारक न केवल हमारे निजी जीवन को बल्कि हमारी सामूहिक चेतना को भी गहराई से प्रभावित करते हैं। समरसता का  सत्संग उन आवाज़ों का एक मंच है जिनकी आवाज़ अब तक नहीं सुनी गई हैं। हम आपसे आग्रह करते हैं कि इस सत्संग में भाग लें और अपने समाज के विविध पहलुओं को लेकर विचार, अपने अनुभव, अपनी चिंताएँ, अपनी शंकाएँ साझा करें। आपका सहयोग इस कोशिश को अधिक सार्थक और प्रभावी बनाएगा। वक्ता के रूप में भागीदारी के लिए कृपया यह फ़ॉर्म सबमिट करें। प्रविष्टि को स्वीकार करने की आख़िरी तारीख़ 25 जनवरी 2025 है। प्रविष्टि यथासंभव सरल भाषा में लिखकर भेजें।

पास-पड़ोस-पर्यावरण

पास-पड़ोस और पर्यावरण का विषय समाज के लिए इसलिए जरूरी है क्योंकि यह स्वस्थ और संतुलित जीवन का आधार है। स्वच्छ पास-पड़ोस न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करता है। पर्यावरण का संरक्षण स्वच्छ हवा, पानी और हरियाली सुनिश्चित करता है, जिससे समाज में खुशहाली बढ़ती है। सामूहिक प्रयासों से पास-पड़ोस और पर्यावरण को सुधारना संभव है, जो सामाजिक एकता को भी मजबूत करता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य बनाता है।

तन-मन-धन

तन-मन-धन का विषय समाज के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि स्वस्थ शरीर (तन), सकारात्मक सोच (मन), और आर्थिक स्थिरता (धन) एक संतुलित और खुशहाल जीवन का आधार हैं। तन स्वस्थ होगा तो समाज कार्यशील रहेगा, मन प्रसन्न होगा तो सामाजिक सौहार्द बढ़ेगा, और धन की स्थिरता समाज में विकास और आत्मनिर्भरता लाएगी। इन तीनों का सामंजस्य व्यक्ति और समाज को प्रगति की ओर ले जाता है, जिससे समग्र विकास और सामूहिक कल्याण संभव होता है।

विविधता-समानता-साझेदारी

विविधता, समानता, और साझेदारी समाज के लिए जरूरी हैं क्योंकि ये एकता और सामंजस्य का आधार हैं। विविधता से विभिन्न दृष्टिकोण, संस्कृतियां, और क्षमताएं सामने आती हैं, जो समाज को समृद्ध बनाती हैं। समानता हर व्यक्ति को सम्मान और अवसर देती है, जिससे भेदभाव खत्म होता है। साझेदारी से लोग मिलकर काम करते हैं और समस्याओं का समाधान करते हैं। इन तीनों का संतुलन एक समावेशी, प्रगतिशील और शांतिपूर्ण समाज की नींव रखता है, जो सबके हित में है।

सामाजिक समरसता केंद्र : एक विचार

प्रो॰ श्यामल किशोर यादव

सेवानिवृत्त प्रो॰ श्यामल किशोर यादव भूपेन्द्र नारायण मंडल वाणिज्य महाविद्यालय, साहुगढ़ मधेपुरा के संस्थापक प्रधानाचार्य रह चुके हैं। कोसी क्षेत्र के कई शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण में यादव की महती भूमिका रही है। उन्होंने मंडल विचार के संपादक होने का भी दायित्व निभाया है। बिहार के साक्षरता आंदोलन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

मृत्युभोज – एक परिचर्चा

मृत्युभोज पर सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और कानूनी पहलुओं की गहराई से चर्चा आवश्यक है। सामाजिक रूप से यह दिखावा और वर्गीय असमानता बढ़ाता है, गरीब परिवारों पर अनावश्यक दबाव डालता है। सांस्कृतिक दृष्टि से यह परंपरा मृतक की स्मृति और सामुदायिकता से जुड़ी है, परंतु आधुनिकता में इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे हैं। आर्थिक रूप से मृत्युभोज कई परिवारों को कर्ज में धकेल देता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और कमजोर हो जाती है। कानूनी दृष्टि से कुछ राज्यों में इसे रोकने के प्रयास हुए हैं, लेकिन जागरूकता और सख्त कानूनों की कमी से यह परंपरा जारी है। इसे सरल और समावेशी बनाने के लिए सामूहिक पहल जरूरी है। पैनल में भाग लेंगे आलोक कुमार और किशोर कुमार।

बात-चीत | चर्चा-परिचर्चा

कार्यक्रम में भाग लेने वाले वक्ताओं समाज के विभिन्न वर्ग और समूह से आते हैं। कई अलग-अलग विषयों पर वे सब अपनी राय रखेंगे। उन्हें सुनें और उनके साथ बात-चीत में भाग लें। बात-चीत इकतरफ़ा न होकर परस्पर संवाद की शक्ल में हो तो बेहतर है।

लोककला साहित्य व संस्कृति में ग्रामीण भागीदारी – संजय परमार

कोशी क्षेत्र के साहित्य, कला-संस्कृति, लोक गीत, संगीत, लोक गायन वादन के संरक्षण और संवर्धन के लिए हम सबों को आगे आना होगा। सुदूर ग्रामीण इलाके के प्रतिभावान कलाकारों को बेहतर प्लेटफार्म उपलब्ध कराकर उनकी प्रतिभा की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने की जरूरत है। श्याम प्रिया सामाजिक समरसता केंद्र की पहल ‘समरसता का सत्संग’ इस दिशा में मील का पत्थर साबित होने की उम्मीद जगी है।

संजय परमार वाणिज्य विभाग, सी. एम. साइंस कॉलेज, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वे पत्रकारिता से भी जुड़े हैं। वे प्रांगण रंगमंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं जो कला-संस्कृति, पर्यावरण, स्वास्थ्य के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े क्षेत्र में काम करने वाली संस्था है।

शिक्षा का महत्व – कुमारी अनामिका जायसवाल

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अनामिका शिक्षा के महत्व पर बोलना चाहती हैं। उनका मानना है कि शिक्षा आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास और बेहतर करियर के अवसर प्रदान करती है। शिक्षा के माध्यम से लड़कियां सामाजिक कुरीतियों से लड़ पाती हैं, अपने अधिकार समझती हैं, और बेहतर स्वास्थ्य व निर्णय क्षमता प्राप्त करती हैं, जिससे उनका जीवन और समाज दोनों उन्नति करते हैं।

कुमारी अनामिका जायसवाल गोकुल प्रसाद मंडल मध्य विद्यालय की शिक्षिका हैं।

 

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शिक्षा का समावेशी स्वरूप – प्रतिभा कुमारी

 

प्रतिभा का भरोसा शिक्षा के समावेशी स्वरूप में हैं। समावेशी शिक्षा से उनका तात्पर्य है सभी बच्चों को एक साथ शिक्षा देना अर्थात सामान्य बच्चों के साथ-साथ विशिष्ट एवं वंचित वर्ग के बच्चों को भी शिक्षित करना।

 

प्रतिभा कुमारी अध्यापिका के रूप मे उत्क्रमित मध्य विद्यालय मनहरा में पदस्थापित हैं। उन्होंने जंतु विज्ञान से परास्नातक किया है।

 

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तन-मन की समरसता – डॉ॰ अमित आनन्द

क्या हम खुद से कुछ प्रश्न पूछ सकते हैं? क्या यह संभव है कि हम एक ऐसा जीवन जिएं जिसमें समरसता (सामंजस्य) हो, और कोई भी टकराव न हो? कैसे एक ऐसा जीवन जिया जाए जिसमें भीतर और बाहर दोनों ही स्तर पर कोई संघर्ष न हो? जो व्यक्ति असामंजस्यपूर्ण और असंतुलित जीवन जी रहा हो, उसे क्या करना चाहिए? क्या हम, मनुष्य, अपने विचारों की दृढ़ता के साथ इस आदर्श को अपनाकर समरसता प्राप्त कर सकते हैं? क्या हम अपने भीतर के असामंजस्य को देख सकते हैं?

पेशे से आँख के डॉक्टर अमित कुमार ने सेहत ख़ासकर आँख की चिकित्सा के क्षेत्र में कोसी क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है।

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मृत्युभोज : एक विमर्श – डॉ॰ आलोक कुमार

मृत्युभोज पर अतिवादी रुख़ अपनाने के बजाय संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। हमारी परंपराएं और सामाजिक जिम्मेदारियां महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनके कारण आर्थिक बोझ बढ़ाना सही नहीं है। यह जरूरी है कि मृत्युभोज को दिखावे का माध्यम न बनाकर श्रद्धा और सादगी का प्रतीक बनाया जाए। अतिवाद से बचते हुए हमें ऐसा रुख़ अपनाना चाहिए जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाए और आर्थिक असमानता को बढ़ावा न दे। संतुलन ही समाधान है।

समाजशास्त्र के प्राध्यापक रह चुके आलोक कुमार कोसी क्षेत्र की विभिन्न सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं से संबद्ध हैं। उन्होंने कई पत्र, पत्रिकाओं, जर्नल और स्मारिकाओं में लेखन किया है।

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जाति-विहीन समाज – सचिंद्र महतो

जाति-विहीन समाज का सपना आज़ादी के इतने सालों बाद भी एक अधूरा सपना है। इसे लेकर एक व्यापक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की है।

सचिंद्र महतो, पूर्व कुलसचिव, बीएनएमयू, मधेपुरा। जातिविहीन समाज निर्माण आंदोलन के तहत जातिविहीन समाज निर्माण के लिए 2000 ई॰ में बीपी मंडल चौक मधेपुरा से राष्ट्रपति भवन दिल्ली तक की पदयात्रा।

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मानव संस्कार की एक कुरीति के रूप में मृत्युभोज – किशोर कुमार

मृत्युभोज एक सामाजिक कुरीति और समस्या है। यह समस्या दिखावे की मानवीय मनोवृत्ति की वजह से विकराल रूप ले चुकी है। इस पर अंकुश लगाया जाना जरूरी है।

प्रो॰ किशोर कुमार मनोविज्ञान के प्राध्यापक रह चुके हैं। सामाजिक समस्या की मनोवैज्ञानिक व्याख्या वो काफी अनूठे तरीके से करते हैं।

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हिन्दुत्व पर कुछ बातें – नागेन्द्र नाथ झा

हिन्दू दार्शनिक परंपरा गहन विचारों और विविध दृष्टिकोणों का संगम है। इसके छह प्रमुख दर्शनों में सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत शामिल हैं। यह परंपरा आत्मा, ब्रह्म, कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष के सिद्धांतों पर आधारित है। अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत जैसे दर्शन ईश्वर और आत्मा के संबंध को विश्लेषित करते हैं। इस परंपरा में तर्क, अनुभव और आध्यात्मिक अभ्यास का महत्व है। यह जीवन के उद्देश्य को समझने और आत्मज्ञान प्राप्त करने की ओर प्रेरित करती है।

पंडित नागेन्द्र नाथ झा हिन्दू धर्म के रीति-रिवाज़ और धार्मिक परंपराओं के विद्वान हैं। उनकी शिक्षा-दीक्षा श्री उग्रतारा भारती मण्डन संस्कृत महाविद्यालय में हुई है। अभी वे टेवेन्द्र धाम, टेंगराहा के मुख्य पुजारी हैं।

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बिहार के विशेष संदर्भ में रोज़गार की समस्या – अंकित राज

मानव जीवन में खाना, संसाधन, और आबादी की ज़रूरतें रोजगार के कई स्रोतों को जन्म देती हैं, जैसे खेती, पशुपालन, पानी, आवास, दवाइयां, आदि। आबादी और जरूरतों के हिसाब से संसाधनों की उपलब्धता सीमित हो जाती है। आज बढ़ती आबादी के कारण रोजगार एक बड़ा मुद्दा बन गया है। बढ़ती मांग और कम संसाधन हमें भूखमरी और उद्योगों पर निर्भर बना रहे हैं। खासकर बिहार जैसे राज्यों में हालात और भी खराब हैं, जहां लोग मामूली नौकरी के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर हैं।अगर हम अपनी नीतियों में सुधार करें, उद्योग-धंधे शुरू करें, और रोजगार के नए अवसर बनाएं, तो हालात बदल सकते हैं। सही दिशा में कोशिश और जागरूकता से हम अपने भविष्य को बेहतर बना सकते हैं।

मध्यम वर्गीय कृषक परिवार से आने वाले अंकित राज फ़िलहाल अध्ययनरत हैं।

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पर्यावरण जागरूकता – सिंकु कुमारी

पर्यावरण जागरूकता मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। स्वच्छ हवा, पानी और प्राकृतिक संसाधनों के बिना जीवन की कल्पना असंभव है। बढ़ते प्रदूषण और वनों की कटाई ने पर्यावरण को गंभीर संकट में डाल दिया है। पर्यावरण के संरक्षण के लिए जागरूकता आवश्यक है, जिससे हम न केवल प्रकृति को बचा सकते हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वच्छ वातावरण भी सुनिश्चित कर सकते हैं। यह हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है।

सिंकु कुमारी ने 1995 में एक कृषक परिवार में जन्म लिया। एमए और बीएड की पढ़ाई पूरी की।

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पढ़ाई-लिखाई का महत्व – शिवम भारती

पढ़ाई-लिखाई व्यक्ति के समग्र विकास का आधार है। यह न केवल ज्ञान का विस्तार करती है, बल्कि सोचने-समझने की क्षमता, आत्मनिर्भरता और समाज में सम्मान दिलाने में मदद करती है। शिक्षा से रोजगार के बेहतर अवसर मिलते हैं और गरीबी, भेदभाव व अन्य सामाजिक कुरीतियों से लड़ने की शक्ति मिलती है। एक शिक्षित समाज देश की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। शिवम पढ़ाई लिखाई के बारे में अपने जीवन का कुछ अनुभव साझा करना चाहती हैं।

शिवम भारती बिहार सरकार के एक विद्यालय की शिक्षिका हैं।

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ग्रामीण इलाक़ों के छात्रों की शिक्षा के लिए तकनीक का महत्व – प्रणव प्रकाश

ग्रामीण छात्रों की शिक्षा को बेहतर बनाने में तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका है। ऑनलाइन कक्षाओं, डिजिटल सामग्री और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हर छात्र तक पहुंचाई जा सकती है। तकनीक छात्रों को नई जानकारी और कौशल सीखने का अवसर देती है, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। स्मार्ट क्लासरूम और इंटरनेट सुविधा से ग्रामीण क्षेत्र के छात्र भी वैश्विक शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बन सकते हैं, जो उनके भविष्य को उज्जवल बनाता है।

प्रणव प्रकाश पेशे से अभियंता और रुचि से सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनका सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ 19 वर्षों का व्यापक कार्य अनुभव है। ग्रामीण छात्रों की शिक्षा को बेहतर बनाने और संवाद के माध्यम से समाज में बदलाव लाने के सामाजिक कार्यों में उनकी गहरी रुचि है। वर्तमान में आदर्श कॉलेज, घैलाढ़-जीवछपुर, मधेपुरा की शासी निकाय में सचिव के रूप में कार्यरत हैं।

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व्यापार के क्षेत्र में विविधता का महत्व – संजय कुमार

व्यापार में सामाजिक विविधता से नवाचार, रचनात्मकता और वैश्विक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है। विविध पृष्ठभूमि वाले कर्मचारी भिन्न दृष्टिकोण और कौशल लाते हैं, जिससे जटिल समस्याओं का समाधान आसान होता है। यह न केवल कार्यस्थल को समावेशी बनाता है, बल्कि उपभोक्ता वर्ग की विविध आवश्यकताओं को समझने और पूरा करने में भी मदद करता है। विविधता से कंपनी की छवि मजबूत होती है और प्रतिस्पर्धी बाजार में सफलता की संभावना बढ़ती है।

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