भारतीय समाजवाद के आधार स्तंभ थे भूपेंद्र बाबू
भूपेन्द्र बाबू समाजवादी विचारधारा के स्तंभ थे। भूपेन्द्र बाबू ने कोसी में शिक्षा की मशाल जलाने में अग्रणी भूमिका निभाई। वे यह मानते थे कि शिक्षा के माध्यम से ही हम मानव जीवन को ऊपर उठा सकते हैं और समाजवाद के सपनों को साकार किया जा सकता है। समाजवाद ही भारतीय राजनीति का केन्द्र है। अन्य विचारधाराएं आएँगी और जाएँगी, लेकिन समाजवाद हमेशा कायम रहेगा। भूपेंद्र बाबू समाजवाद के जीती-जागती मशाल थे और उनके नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना इस क्षेत्र के लिए गौरव की बात है। इस विश्वविद्यालय के साथ भूपेंद्र बाबू का नाम जुड़ा है, इससे इसकी महत्ता बढ़ जाती है। भूपेंद्र नारायण मंडल का जीवन हमारे लिए आदर्श है। वे आम लोगों के लिए समर्पित मनीषी थे। उन्होंने समाज के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा रोशनी पहुंचाने में अग्रणी भूमिका निभाई। वे अपने से पहले वंचित व्यक्ति के हितों को देखते थे। भूपेंद्र बाबू समाजवाद प्रबल हिमायती थे। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रचारित-प्रसारित करने की जरूरत है। भूपेंद्र बाबू के सामाजिक चेतना का केंद्र बिंदु आम आदमी है।उनका यह आम आदमी मेहनतकश हैं,जीवंत हैं और बेबस तथा लाचार हैं। वे अनपढ़ हैं, सड़क पर सोने को मजबूर हैं, झुग्गी झोपड़ियों के निवासी है,खेत-खलिहानों की मिट्टी फोड़कर सोना उगानेवाले हैं। कोसी की विद्रूपता को देखकर जवान होनेवाले भूपेंद्र बाबू के हृदय में आम आदमी के कष्ट,संत्रास, संघर्ष,दुःख-दर्द आदि आदि का आ जाना स्वाभाविक ही था। उनका दिल उनके लिए धड़कना आवश्यक था, यही कारण है कि अपने राज्यसभा सत्र में और लोकसभा सदन में बराबर उसकी वकालत करते रहे और उन्हें मुख्य धारा में लाने की बात करते रहे। भूपेंद्र नारायण मंडल राज्यसभा और संसद भवन में आम आदमी के भागीदारी की बात करते रहे। उन्होंने राष्ट्रीय पार्टियों और नेताओं को भी लताड़ा है। वे दलितों के दर्दों का जिक्र करते रहे हैं। भूपेंद्र बाबू निर्भीक होकर अपनी बात रखते थे। चाहे वह गाँधी के खिलाफ बोलना हो या नेहरू-इंदिरा के खिलाफ। वे लोहिया के समान जाति प्रथा के विरोधी थे। वे प्रशासन में आम आदमी के पक्षधर थे। भूपेंद्र बाबू रेलवे के भेदभाव, शिक्षा,विश्वविद्यालय अनुदान आयोग,राष्ट्रभाषा आदि आदि विषयों पर जो विचार व्यक्त किये हैं। वह अनुकरणीय है। जाति नहीं जमात की राजनीति के पुरोधा भूपेंद्र नारायण थे। भूपेंद्र बाबू जीवन पर्यंत भारतीय राजनीति में व्याप्त कुरुतियाँ और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे। सुखी संपन्न परिवार में जन्म लेकर भी साधारण इंसान के लिए जीनेवाले भूपेंद्र बाबू असाधारण प्रतिभा के धनी थे। कोसी की संताप को सहकर और आमजनों के दुख देखकर अपना संपूर्ण जीवन लोककल्याण के लिए समर्पित कर देने वाले भूपेंद्र बाबू मधेपुरा और भारतीय राजनीति के समाजवाद के आधार स्तंभ थे। अध्ययन और चिंतन मनन उनका राजनीति हथियार था। इसी के बल पर उन्होंने भारतीय राजनीति में समाजवादी विचारधारा के मजबूत स्तंभ के रूप में उभरकर मानवीय कल्याण का एक सुंदर रूप प्रस्तुत किया। भूपेंद्र बाबू का युग राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का युग था।
भूपेंद्र बाबू ने 13 अगस्त, 1942 को मधेपुरा कचहरी में तिरंगा झंडा फहराकर वकालत की पेशे के सरकारी लाइसेंस को जन समूह के समक्ष फाड़ दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी का संकल्प लिया। आजादी के बाद भूपेंद्र बाबू कोसी अंचल में सांस्कृतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीति आंदोलन चलाया। वे अपनी टोली के साथ सड़क का धूल फांकते रहे और गाँव-गाँव जाकर जनता को जागृत करते रहे। उस क्षेत्र का वे कोना कोना झाँक आए।उन्होंने जमींदारी प्रथा का भी पुरजोर विरोध किया। उन्होंने छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों को जमींदारों के शोषण से मुक्त करवाया। इनके ही अथक प्रयास से 1952-1953 में टी.पी.कॉलेज की स्थापना हुई। शैक्षणिक उत्थान की दिशा में यह एक बड़ी उपलब्धि थी। भारतीय राजनीति में पूंजीपतियों का बोलबाला था। राष्ट्रीय नेता भाषण वीर और वचन वीर ही थे। उनकी कर्मशीलता हया की गोद में जाकर बैठ गयी थी। आम जन से उनका सरोकार नहीं था। वे विलासिता पूर्ण जीवन जीने के लिए अभिशप्त थे। भ्रष्टाचार के आँचल तले अपनी जिंदगी जीने के लिए विवश थे। आम जन संकट ग्रस्त थे। वे अपनी आवाज की मुखरता का सशक्त प्रतिनिधि चाहते थे। ऐसे कठिन समय में यह संजय भारतीय राजनीति के नंगापन को तार-तार करते हुए एक स्वच्छ और स्पष्ट आईना दिखाने का काम किया। राज्यसभा में कहा था- “अकाल में कौन मरता है। अकाल में आदिवासी,हरिजन और पिछड़ी जाति के गरीब लोग हीं मरते हैं। जो गरीब हैं,बैकवर्ड हैं,वही लोग मरते हैं। इन लोगों को कष्ट में देखने की इनकी आदत पड़ गई है और एक तरह इनका यह संस्कार हो गया है।रोगग्रस्त समाजवाद के घात-प्रतिघात के अंदर वर्तमान सभ्यता में सड़न आमजन के हित में लगातार संघर्ष के कारण भूपेंद्र नारायण मंडल को आधे दर्जन दफा जेल जाना पड़ा। जिसमें गुलाम भारत में दो व आजाद भारत में चार दफा शामिल है। समाज सृजन, पुस्तकों के अध्ययन की जहां लत थी, वहीं बैलगाड़ी उनके जन संवाद का सबसे बड़ा संवाहक थे। 20वीं शताब्दी के छठें-सातवें दशक में भूपेंद्र नारायण मंडल का समाजवादी व राजनीति आंदोलन न सिर्फ शीर्ष नेताओं में शुमार होते रहा, बल्कि पूरब के सबसे बड़े सोशलिस्ट माने जाते थे। आज के दौर में भूपेंद्र नारायण मंडल को समझने के लिए साठ के दशक में राज्य सभा में उनके द्वारा दिए उस भाषण को याद करना ज़रूरी है, जब उन्होंने कहा था कि जनतंत्र में कोई पार्टी या व्यक्ति यह समझे कि वही जब तक शासन में रहेगा, तब तक संसार में उजाला रहेगा, वह गया तो सारे संसार में अंधेरा हो जायेगा, इस ढंग की मनोवृति रखने वाला, चाहे वह व्यक्ति हो या पार्टी, वह देश को रसातल में पहुंचायेगा। भूपेंद्र नारायण मंडल समाजवाद के ज्ञाता ही नहीं बल्कि समाजवाद को जीने वाले नेता थे। भूपेंद्र नारायण मंडल समाजवाद के ज्ञाता ही नहीं बल्कि समाजवाद को जीने वाले नेता थे।
भूपेन्द्र बाबू की सोच, कथनी एवं करनी में समानता थी। वे जो सोचते थे, वही बोलते थे और वही करते थे। यही उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी। भूपेन्द्र बाबू आजीवन अपनी मातृभूमि को गर्वोन्नत करने हेतु प्रयासरत रहे। वे स्कूली जीवन से ही राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत थे। राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें स्कूल से निष्कासित भी कर दिया गया था। भूपेंद्र बाबू ईमानदारी के प्रतीक थे। उन्होंने राजनीति में भी त्याग का प्रतिमान स्थापित किया। वे लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों के सदस्य चुने गए थे। दोनों सदनों में वे अपनी बात को काफी मजबूती से रखते थे। उन्होंने जमींदार परिवार में जन्म लेने के बावजूद जमींदारी उन्मूलन के लिए काम किया। वे हमेशा सदन से लेकर सड़क तक आम लोगों की आवाज को बुलंद करते रहे। भूपेन्द्र बाबू सादगी एवं ईमानदारी के प्रतिक थे। हमें इन दोनों गुणों को जीवन में अपनाना चाहिए। ईमानदारी की आवश्यकता सभी लोगों को है। ईमानदारी ही समाज एवं राष्ट्र को महान बनाती है। सादगी से भी अधिक इमानदारी का महत्व है। भूपेंद्र बाबू सभी लोगों के साथ समानता का व्यवहार करते थे और विरोधी विचारों का भी सम्मान करते थे। भूपेन्द्र बाबू ने समाजवाद को जमीन पर उतारा। उनका समाजवाद झोपड़ी एवं बैलगाड़ी से निकला है। वे दूसरों के दर्द को पहचानते थे। मधेपुरा को समाजवाद की धरती बनाने में उनका अहम योगदान था। किसे पता था कि जिस किशोर भूपेंद्र को विद्यालय से निकाला जा रहा है, कभी उन्हीं के नाम से न केवल एक महाविद्यालय, बल्कि विश्विद्यालय की स्थापना होगी। भूपेंद्र बाबू के देहावसान होने के बाद उनके जीवन के आदर्शों को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से साहुगढ़, मधेपुरा में सन 1976 में भूपेंद्र नारायण मंडल वाणिज्य महाविद्यालय की स्थापना की। यह बहुत आसान काम भी नहीं था। इस महाविद्यालय की शुरुआत करने के लिए उनके असंख्य चाहने वालों ने चन्दा इकठ्ठा किया। साहुगढ़ ग्राम के निवासियों के अलावा पूरे इलाक़े से लोगों ने सहयोग किया।
भूपेंद्र बाबू का स्पष्ट मानना था कि शिक्षा सर्व जन को सुलभ होना चाहिए। समाज के पिछड़े तबकों को लेकर उनकी समझदारी बहुत साफ थी, जिसको उनके कई भाषणों में देख सकते हैं। 26 नवंबर 1969 को राज्यसभा में दिए गए उनके भाषण का एक अंश को देखें – “आज संविधान में है कि जात-पात के नाम पर, धर्म के नाम पर, लिंग के नाम पर कोई किसी तरह का भेदभाव नहीं हो। एक मायने में वह सही बात है। लेकिन दूसरी तरफ हम देखेंगे कि दूसरी बातों में जो होता है वह गलत चीज है, क्योंकि देश का संविधान कहता है कि छोटे तबके के आदमी हैं, उनको आगे बढ़ाओ। अब अगर उसको आगे बढ़ने से रोका जाएगा तो वह ठीक नही होगा। राज्यसभा में शिक्षा के अधिकार को लेकर उन्होंने अलग अलग भाषणों में विस्तार से अपनी बातों को रखा है -“आज यूनिवर्सिटी बढ़ रहे है और अर्थ के अभाव में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा लागू नही हो रही है।आज यह कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी में जाने से साधारण स्टूडेंट्स को रोकना चाहिए, तो मेरी यह निश्चित धारना है कि सरकार के या किसी भी आदमी के दिमाग में अगर यह हो कि हिंदुस्तान के साधारण लड़कों को उच्च शिक्षा में जाने से रोका जाय, क्योंकि वह मेधावी नहीं है तो यह अनर्थकारी सिद्ध होगा; क्योंकि यह ऐसा देश है, जिसका हजारों वर्षों से एक बहुत बड़ा तबका गुलामी में रह चुका है। साधारण स्तर का रहने पर विश्वविद्यालय जाने से उनको नही रोकना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा के साथ साथ उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए सदैव भूपेंद्र बाबू प्रयासरत थे। उनके इन्ही सपनों के सम्मान में 1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद ने उनके नाम पर मधेपुरा में विश्वविद्यालय की घोषणा की और ललित नारायण मिश्र वि.वि. से अलग होकर भूपेंद्र नरायण मंडल वि.वि. की स्थापना हुई। उनके प्रयासों के फल मधेपुरा और आसपास के कई इलाक़ों में देखे जा सकते हैं। इस पूरे क्षेत्र में, महाविद्यालयों में विश्वविद्यालय में शिक्षा के स्तर को और बढ़ाया जाय, नई तकनीकों से जोड़कर यहां के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाय, यही उनको याद करने का सबसे अच्छा उदाहरण होगा। आज कहीं भी समाजवाद नहीं है। तथाकथित समाजवादियों ने समाजवादी सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है। आज का समाजवाद फाइवस्टार होटल एवं हेलिकॉप्टर से आता है। भूपेन्द्र बाबू के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। भूपेंद्र बाबू की जन्मोत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय को भूपेन्द्र बाबू के विचारों के अनुरूप आगे बढ़ाने की जरूरत है। विश्वविद्यालय में शैक्षणिक माहौल बनाना ही भूपेन्द्र बाबू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
श्री पिन्टु यादव
भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, लालूनगर, मधेपुरा बिहार।