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कर्पूरी जैसा कोई नहीं। सुरेंद्र किशोर

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कर्पूरी ठाकुर के जन्म दिन (24 जनवरी )
की पूर्व संध्या पर
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कर्पूरी जैसा कोई नहीं
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सुरेंद्र किशोर
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मेरा मानना है कि खुद को कर्पूरी ठाकुर का अनुयायी कहने का नैतिक अधिकार सिर्फ उसे ही है जो अपनी जायज आय में ही अपना जीवन- यापन करे।या ऐसा जीवन जीने की कोशिश करे।
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सन 1972-73 में समाजवादी कार्यकर्ता के रूप में मैं कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव था।
वे विधायक थे।
बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।
प्रतिपक्ष के नेता को आज जैसी सुविधाएं तब हासिल नहीं थीं।
रिक्शे पर चलते थे।सरकार की तरफ से सिर्फ उन्हें एक पी.ए.यानी टाइपिस्ट मिला हुआ था।कुछ दैनिक अखबारों के खर्चे मिलते थे।
विधायक के रूप मेें हर माह 300 रुपए वेतन।
विधान सभा की कमेटियों की महीने में अधिकत्तम चार ही बैठकें तब होती थीं।हर बैठक के लिए 15 रुपए भत्ता।
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एक बार कर्पूरी जी की धर्म पत्नी ने मुझसे कहा कि आप ठाकुर जी से कहिए कि महीने भर का राशन एक ही दफा खरीद दें।
महीने में वे 15-20 दिन पटना से बाहर ही रहते हैं।चैेके में क्या है और क्या नहीं है,इसकी चिंता वे नहीं करते।
मैंने कर्पूरी जी से यह बात कही।उस पर उन्होंने कहा कि उनसे कहिए कि वे लोग गांव यानी पितौझिया जाकर रहें।
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जब तक उनके साथ मैं रहा,मैंने यह पाया कि कर्पूरी जी रोज ब रोज के खर्चे के लिए किसी से पैसे यानी चंदा नहीं लेते थे।
उनसे मिलने के लिए रोज दर्जनों लोग आते थे।उनमें से कुछ ही लोग ऐसे होते थे जिनके पास सौ-पचास रुपए होने की संभावना रहती थी।
बाकी तो गरीब लोग होते थे ।साफ-सुथरा कपड़ा वाले वैसे लोगों की ओर इशारा करते हुए कर्पूरी जी मुझसे कहते थे कि ध्यान रखिएगा कि ये लोग यहां किसी कोई पैसा न दे।
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कर्पूरी जी सिर्फ चुनाव के समय या पार्टी के सम्मेलनों के समय ही चंदा मांगते थे।पर उस समय भी वे काफी कम पैसे स्वीकारते थे।
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ऐसा नहीं था कि कर्पूरी जी के जीवन काल में आम राजनीति में पैसों का खेल नहीं होता था।
सत्तर के दशक में बिहार में हुए एक संसदीय उप चुनाव में एक सत्ताधारी उम्मीदवार ने 32 लाख रुपए खर्च किए थे।
1972 का 32 लाख ??
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अपने साथ काम करने वाले को कर्पूरी जी तुम नहीं कहते थे।आप कहते थे।
सिर्फ नौकर मोहन और पुत्र रामनाथ को तुम कहते थे।
मुझसे कभी गलती हुई तो उन्होंने यह नहीं कहा कि आपने गलती कर दी ।या क्यों गलती कर दी ?
बल्कि कहते थे–‘‘गलती हो गई।’’
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एक दिन यानी 26 मार्च, 1972 को कर्पूरी ठाकुर ने मुझसे मेरे बारे में कहा था,
‘आप तेज ,मृदुभाषी और सुशील लड़का हैं।’
(मेरी निजी डायरी में यह बात दर्ज है)
ध्यान रहे कि तब मैं कर्पूरी जी का निजी सचिव था।
उनके बुलावे पर मैं उनसे जुड़ा था।
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एक लाइन में कह सकता हूं कि कर्पूरी जी से अधिक महान नेता से मुझे अब तक मुलाकात नहीं हुई।
महान होंगे ,पर मैं वैसे नेता से नहीं मिल सका जबकि दशकों राजनीति और पत्रकारिता में काम करने का मेरा अनुभव है।
मैं करीब डेढ़ साल तक कर्पूरी जी के सरकारी आवास में रात-दिन साथ रहा।
इतना समय काफी है जब आप किसी को बाहर-भीतर से जान -समझ जाते हैं।
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जहां तक मेरी जानकारी है,या मुझे लगता है कि अब किसी भी क्षेत्र में वैसे लोग पैदा होना बंद हो गये हैं।
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23 जनवरी 25

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