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अग्रज श्री शंभू नारायण यादव जी को बहुत-बहुत बधाई

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अग्रज श्री शंभू नारायण यादव जी को बहुत-बहुत बधाई
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भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, लालूनगर, मधेपुरा के स्थापना काल (जनवरी-1992) से लेकर आज तक लगातार तैंतीस वर्ष कुलपति के निजी सहायक के रूप में जानदार, शानदार एवं असरदार भूमिका निभाने वाले अग्रज श्री शंभू नारायण यादव जी की औपचारिक सेवानिवृत्त के अवसर पर आयोजित विदाई सह सम्मान समारोह में शामिल होने का अवसर मिला।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि श्री यादव विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति प्रो. रमेन्द्र कुमार यादव ‘रवि’ को अपना आदर्श मानते हैं और उनके कारण ही एक कंपनी की नौकरी एवं अपने उभरते हुए राजनीतिक कैरियर को छोड़कर विश्वविद्यालय की सेवा में आए तथा यहाँ की आबोहवा में रच-बस गए।

श्री यादव ने अपने लंबे कैरियर में अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं बेबाकी के कारण अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। आप किसी औपचारिक कार्यक्रम या अनौपचारिक बातचीत में भी जो कुछ बोलते हैं, वह प्रभावकारी होता है। आपको बातों को सुव्यवस्थित ढंग से रखने और उसके पक्ष में ठोस तथ्यों एवं अकाट्य तर्कों को प्रस्तुत करने में महारथ हासिल है।

आप रिश्तों को निभाने के मामले में भी काफी आगे हैं और जिसे सही मानते हैं, उसका पक्ष लेने में अपने निजी नफा-नुकसान की भी परवाह नहीं करते हैं। आपके आलोचकों के मुंह से भी आपके बारे में प्रायः यह सुनने को मिलता है कि आप जिसके भी साथ रहते हैं, तो हर परिस्थिति में उसके साथ रहते हैं और यदि अपनी जिद पर उतर आते हैं, तो बड़े-बड़े को उनके मूंह पर खरी-खरी सुनाने से भी बाज नहीं आते हैं।

मुझे याद है कि जब मेरा बीएनएमयू, मधेपुरा के लिए चयन हुआ था, तो मैं अपने कुछ साथियों के साथ विश्वविद्यालय में अपनी नियुक्ति से संबंधित प्रक्रियाओं को पता करने आया था। उस दिन मैं विश्वविद्यालय में कई लोगों से मिला था। हम तत्कालीन कुलपति महोदय प्रो. विनोद कुमार एवं कुलसचिव महोदय प्रो. कुमारेश प्रसाद सिंह दोनों के मुख्यालय से बाहर रहने के कारण उन दोनों से नहीं मिल पाए थे।

लेकिन मेरी तत्कालीन परिसंपदा पदाधिकारी प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार जी से उनके कार्यकाल में और कुलपति के निजी सहायक श्री शंभू नारायण यादव जी से कुलपति कार्यालय के बरामदे पर मुलाकात हुई थी। मेरे साथ इन दोनों व्यक्तियों ने अन्य लोगों की अपेक्षा काफी अच्छा व्यवहार किया था।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बिहार लोक सेवा आयोग, पटना के माध्यम से वर्ष 2016 में मैथिली विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्त के बाद वर्ष 2017 में दर्शनशास्त्र विषय में नियुक्त की अनुशंसा हुई थी। अपनी नियुक्ति के लिए इन दोनों विषयों के शिक्षकों को यहां बीएनएमयू में काफी संघर्ष करना पड़ा था। मैं अपने संघर्ष की कहानी पहले भी कई बार बता चुका हूं। यहां उसे दुहराने का कोई औचित्य नहीं है।

लेकिन मैं इतना जरूर बताना चाहता हूं कि उस दौरान नए कुलपति के रूप में मेरे पैतृक विश्वविद्यालय (तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर) के विद्वान शिक्षक प्रो. अवध किशोर राय तथा प्रतिकुलपति के रूप में वहीं के शिक्षक प्रो. फारुक अली की नियुक्ति हमारे बैच के शिक्षकों के लिए वरदान साबित हुआ। फिर हमारे बाद हमारे बैच के अन्य विषयों के शिक्षकों को अपनी नियुक्ति के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ा।

गुरुवर प्रो. अवध किशोर राय ने तो मुझे ‘आउट ऑफ वे’ जाकर नियुक्ति के महज चालीस दिनों के अंदर विश्वविद्यालय का जनसंपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) बना दिया। बस यहीं से मेरी कुलपति के निजी सहायक (पीएं) के साथ घनिष्ठता शुरू हुई।

वैसे मुझे उस समय कुछ लोग कहते थे कि ‘पीए साहेब’ (तब तक वे शंभू भाईजी नहीं बने थे) को कुलपति द्वारा ‘पीआरओ’ को अतिरिक्त तरजीह देना और गाड़ी पर अपने बगल में बैठाकर सभी कार्यक्रमों में ले जाना थोड़ा अटपटा-सा लगता है।

लेकिन मैंने स्वयं कभी भी अपने प्रति शंभू बाबू के मन में कोई कटुता महसूस नहीं की। इसके विपरित आपने मुझे हमेशा अतिरिक्त प्रेम एवं सम्मान दिया और हमेशा मेरे दुख-सुख में मेरे साथ मजबूती से खड़े रहे। इसी की एक बानगी है कि आपने मेरे लिए स्वयं अपने कमरे में ‘पीआरओ’ कार्यालय बनबाया एवं अपनी ‘अलमीरा’ भी मुझे दे दी थी।

मैं यहाँ यह भी बताना चाहता हूं हूँ कि तत्कालीन कुलपति महोदय (अवध बाबू) मेरे लिए कुलपति कम, अभिभावक ज्यादा थे। इस कारण मैं कभी- कभी अपने बाल-हठवश उनके साथ कुछ जगहों पर जाने से मना कर देता था या कभी-कभी अपनी नादानियों के कारण उनका फोन नहीं उठाता था। ऐसे समय में वे अपने ‘पीए साहेब’ (‘शंभू बाबू’) से कहते थे कि आप ‘पीआरओ’ को बुलाइए- वह आपकी बात मानेगा!

बहरहाल समय के साथ मैं ‘पीए साहेब’ के करीब आता चला गया और आप कब ‘पीए साहेब’ से ‘भैया’ एवं ‘भाईजी’ बन गए यह पता ही नहीं चला। आज आपकी औपचारिक सेवानिवृत्त के समय आपके साथ बिताए बहुतेरे यादगार पल आंखों के सामने कौंध रहे हैं। वे पल मेरे जीवन की अमूल्य निधि हैं। लेकिन मैं उन सबों को अभी छोड़ रहा हूं…

अंत में मैं विश्वविद्यालय के वर्तमान माननीय कुलपति प्रो. बी. एस. झा साहेब के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं, जिन्होंने व्यक्तिगत पहल करके आपकी सेवानिवृति के अवसर पर कार्यालय में विदाई-सह-सम्मान समारोह आयोजित कराया। सचमुच किसी व्यक्ति के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि उसके कार्यकाल के आखिरी दिन शैक्षणिक जगत के सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति उसकी तारीफ करते हुए अघा नहीं रहा हो और देर शाम तक कार्यक्रम के बाद उसको अपने साथ ‘डिनर’ पर आमंत्रित करते हुए भावविभोर हो!

पुनः माननीय कुलपति महोदय के प्रति बहुत-बहुत साधुवाद। माननीय के निवर्तमान निजी सहायक शंभू भाईजी को हर्षोल्लास पूर्ण सेवानिवृत्त पर बहुत-बहुत बधाई तथा आगामी नई अग्रगामी भूमिकाओं के लिए अग्रिम शुभकामनाएं। भाभी नीलू कुमारी (असिस्टेंट प्रोफेसर, गृह विज्ञान विभाग, यूवीके कॉलेज, कड़ामा-आलमनगर) तथा दोनों बच्चों सिद्धि (ब्यूटी) एवं विराट (बिट्टू) को भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

-सुधांशु शेखर, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा

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